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अपनी चाल से बाज नहीं आ रहा चीन, भारत को लद्दाख में उलझाकर खुद को हिंद महासागर में कर रहा मजबूत

पिछले कुछ सालों से भारत और चीन के रिश्ते सामान्य नहीं है। भले ही दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और राजनैतिक बातचीत जारी है लेकिन गतिरोध को लेकर अब तक कोई हल नहीं निकल सका है। पिछले साल मई-जून में भारत और चीन की सेना लद्दाख में आमने-सामने हो गई थी। चीन लगातार अपनी विस्तार वादी नीति को बढ़ाने की कोशिश में है। वह भारत के कई हिस्सों पर लगातार अपना दावा करता है। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर चीन भारत से चाहता क्या है? कुछ विशेषज्ञों की माने तो उनका दावा है कि चीन भारत को लद्दाख में उलझाकर खुद को हिंद महासागर में मजबूत कर रहा है।
लद्दाख के 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से एक गोगरा पोस्ट से फेस ऑफ की स्थिति को कम करने के लिए चीन के साथ एक समझौते की स्थिति में भारत पहुंच गया है। हालांकि अब तक चीन की ओर से कोई अधिकारिक बयान इस पर नहीं आया है। लद्दाख में चीन के साथ बढ़े गतिरोध के बाद भारत ने क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इस क्षेत्र में मिलिट्री एसेट्स को लेकर बड़ा खर्च आया है। भारत सरकार अतिरिक्त हथियार, गोला-बारूद और लॉजिस्टिक आइटम खरीद रही है।
दूसरी ओर रक्षा विशेषज्ञों का यह मानना है कि हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को चीन लगातार कम करने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि चीन लगातार भारत को लद्दाख में उलझाकर रखा हुआ है। लद्दाख के जरिए चीन लगातार भारत पर दबाव बनाता रहेगा। इसके साथ-साथ हथियार की खरीदारी में भारत ज्यादा शामिल रहेगा जिससे कि यहां की अर्थव्यवस्था भी दबाव में रहेगी। चीन अपनी नौसेना में हर साल 20 से 25 युद्धपोत और पनडु्बियां जोड़ रहा है जो कि भारतीय नौसेना की तुलना में अधिक भार वाले जहाज है। इसके साथ-साथ वह हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने की कोशिश में है। एक रक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक आने वाले 10 सालों में चीन एक स्थाई युद्ध वाहक हिंद महासागर में तैनात कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूनएनएससी) की खुली चर्चा के बाद, भारत के अध्यक्षीय वक्तव्य में चीन को कड़ा संदेश देते हुए स्पष्ट रूप से इस बात की पुष्टि की गई है कि 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन में सामुद्रिक गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित किया जा चुका है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने एक वीडियो संदेश में कहा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में समुद्री सुरक्षा पर हुई उच्चस्तरीय बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही। तिरुमूर्ति ने कहा, सुरक्षा परिषद की इस बैठक में पहली बार समुद्री सुरक्षा की समग्र अवधारणा पर अध्यक्षीय वक्तव्य को स्वीकार किया गया है। इस वक्तव्य में समुद्री डकैती, सशस्त्र लूट और अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध के उल्लेख के अलावा स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 1982 का संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन सामुद्रिक गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित करता है।
पंद्रह देशों के निकाय द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए अध्यक्षीय वक्तव्य (पीआरएसटी) में सुरक्षा परिषद ने पुष्टि की है कि 10 दिसंबर 1982 को अमेरिका में हुए संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) में परिलक्षित अंतरराष्ट्रीय कानून समुद्री गतिविधियों पर लागू होने वाले कानूनी ढांचे को निर्धारित करता है। भारत के इस अध्यक्षीय वक्तव्य को सुरक्षा परिषद द्वारा अपनाए जाने को चीन के लिये कड़ा संदेश माना जा रहा है, जो दक्षिण चीन सागर समेत विभिन्न समुद्री क्षेत्रों पर अपना दावा जताता रहा है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इससे पहले, सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय खुली परिचर्चा की अध्यक्षता की थी। इस दौरान, प्रधानमंत्री ने समुद्री व्यापार और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विवादों के शांतिपूर्ण समाधान समेत समावेशी समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिए पांच सिद्धांत पेश किये।

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